Article on pages 61 and 62 of this magazine.
जलवायु परिवर्तन के आशंकित संकटों को लेकर पिछले 20 सालों से दुनिया में घबराहट का माहौल बना हुआ है। इसी के चलते 1992 में रियो दि जनेरियो में आयोजित पहले पृथ्वी सम्मेलन से लेकर लगातार पृथ्वी सम्मेलनों का आयोजन होता आ रहा है। हाल ही में दोहा चक्र की वार्ता संपन्न हुई है। लेकिन दुखद पहलू यह है कि इसमें भी कोई ठोस नतीजा नहीं निकल सका है।
विकासशील देशों में जलवायु परिवर्तन का सर्वाधिक असर ग्रामीण और कृषि आधारित समुदायों पर पड़नेवाला है। फसलों के चक्र में परिवर्तन उनका नाश और लोगों के विस्थापन इस समस्या के अभिन्न अंग होंगे। दुनिया की आबादी में करीब 1.7 अरब लोग आज भी कृषि पर निर्भर हैं। इसलिए जलवायु परिवर्तन की कोई भी सार्थक बातचीत कृषि की उपेक्षा कर नहीं की जा सकती।