संतोष सारंग
— बिहार में औसत से कम हुर्इ बारिश, सूखे की आशंका बढी
— धान की खेती चौपट
— जलवायु परिवर्तन का मौसम पर असर
बाढ़ व सुखाड़ बिहार की नियति बन चुकी है। कोसी, बागमती एवं गंगा के कुछ मैदानी इलाकों में बाढ़ किसानों के लिए त्रासदी बनी हुर्इ है, तो राज्य के शेष हिस्से सूखे की चपेट में हैं। प्यासी धरती को मानसून तरसा रहा है। आषाढ़ का एक-एक दिन बारिश की बूंदों के लिए तरसता रहा। अब सावन का महीना चल रहा है, लेकिन मानसून की बेरूखी बरकरार है। इसके चलते खरीफ फसल खासकर धान की खेती चौपट हो रही है। इधर, खेतों में दरार फट रही हैं, तो इधर किसानों का कलेजा फट रहा है। जिन किसानों ने कर्ज लेकर धान की रोपनी की थी, उनके पास अपनी किस्मत पर रोने के अलावा और कोर्इ चारा नहीं है। आसमान की ओर टकटकी लगाये हजारों किसानों के खेत खाली पड़े हैं। धान की रोपनी का समय भी बीत गया।
बदलते मौसम का मिजाज देखिये कि रेगिस्तानी इलाके (ड्रार्इ एरिया) में खूब बारिश हो रही है और मेधों के प्रदेश मेघालय के चेरापूंजी में औसत से कम बारिश हो रही है। मौसम वैज्ञानिक मौसम चक्र में बदलाव का कारण जलवायु परिवर्तन को मानते हैं। पूसा कृषि विश्वविधालय के वरीय वैज्ञानिक डा आइबी पांडे का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण कहीं बाढ़, तो कहीं सुखाड़ की सिथति पैदा हो रही है। मुंबर्इ, गुजरात, उत्तराखंड एवं ड्राइ एरिया में भारी वर्षा हो रही है।
यह जलवायु परिवर्तन का ही नतीजा है कि बिहार के किसान सूखे की मार झेलने को विवश हैं। प्रदेश में अबतक 469.4 एमएम बारिश होनी चाहिए थी, पर 349.6 एमएम ही हुर्इ है। यानी 26 फीसदी कम बारिश दर्ज की गयी है। राज्य के सिर्फ 8 जिले सीवान, पूर्वी चंपारण, मधुबनी, मधेपुरा, अरवल, कटिहार, बेगूसराय व पूर्णिया में सामान्य बारिश हुर्इ है। सीतामढ़ी, वैशाली, गया, नवादा, औरंगाबाद व लखीसराय जिलों की सिथति काफी खराब है। इन जिलों में 60 से 100 फीसदी कम बारिश हुर्इ है। आंकड़ों पर गौर करें तो 23 जिलों में 50 फीसदी से कम बारिश हुर्इ है। इसके चलते 43 फीसदी धान की रोपनी ही अबतक हो पायी है। राज्य के 10 जिले ऐसे हैं, जहां 10 फीसदी से भी कम धान की रोपनी हो सकी है। ये जिले हैं-जमुर्इ, नवादा, नालंदा, शेखपुरा, गया, जहानाबाद, लखीसराय, भोजपुर, बांका, औरंगाबाद। इस वर्ष राज्य में 34 लाख हेक्टेयर भूमि में धान की रोपनी का एवं 91 लाख टन धान उत्पादन का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन अब नहीं लगता है कि यह लक्ष्य प्राप्त होगा।
मौसम विज्ञान केंद्र, पटना के निदेशक डा एके सेन बताते हैं कि राजस्थान से बे आफ बंगाल की ओर चलनेवाली मानसून की टर्फ लाइन बिहार के ऊपर काफी कमजोर हो गयी। इसी वजह से बिहार में औसत से कम बारिश हुर्इ। इसके कमजोर होने की मुख्य वजह प्रदेश के ऊपर एयर सिस्टम का कमजोर होना है।
बिहार की अर्थव्यवस्थ खेती पर निर्भर है। यहां की लगभग 80 फीसदी आबादी की रोजी-रोटी खेती व पशुपालन से चलती है। सिंचार्इ व्यवस्था के कमजोर होने के कारण यहां कृषि पैदावार मानसून आधारित है। अधिकांश जिलों के स्टेट बोरिंग ठप हैं। नहरों की सिथति भी अच्छी नहीं है। कर्इ नदियां बरसाती बन गयी हैं। अधिकांश कुएं मिट गये हैं। ऐसे में किसानों के पास पटवन के लिए मानसून के अलावा निजी बोरिंग ही विकल्प है, जो खर्चीला है। डीजल व कृषि यंत्रों की बढ़ती कीमतें किसानों की कमर तोड़ रहे हैं। लघु व सीमांत किसानों के पास अपना पंपिंग सेट नहीं होता हैै। वे प्रति घंटे के हिसाब से पटवन का पैसा चुकाते हैं। उन्हें कर्ज लेकर खेती करनी होती है। ऐसे में मौसम की मार उन्हें और कर्जदार बना देती है। वैशाली जिले के सलहा के किसान शिवचंद्र सिंह कहते हैं कि धान की खेती चौपट हो गयी। कर्ज लेकर बिचड़ा गिराये थे। आधे खेत में भी रोपनी नहीं हो पायी है। डीजल अनुदान से भी कितना लाभ होगा।
मौसम चक्र में हो रहे बदलाव को देखते हुए किसानों को फसल चक्र में भी बदलाव करने की जरूरत पड़ेगी। बिहार की मुख्य फसल धान, गेहूं, मक्का, सबिजयां हैं, जिसे पर्याप्त पानी की आवश्यकता होती हैं। किसानों को ऐसे फसलों का चुनाव करना होगा, जो कम पानी में भी हो अच्छी फसल हो। हालांकि, राज्य सरकार ने सूखे की आशंका को देखते हुए वैकलिपक फसल योजना तैयार की है। सरकार प्रदेश को सूखाग्रस्त घोषित करने की भी तैयारी कर रही है। कृषि उत्पादन आयुक्त एके चौहान बताते हैं कि योजना तैयार कर ली गयी है। किसानों को मक्का, उड़द, कुल्थी, अरहर, तोरिया, कुरथी व मड़ुआ का बीज मुफ्त में दिया जायेगा। शिविर लगा कर किसानों के बीच उपलब्ध कराया जायेगा। लेकिन कृषि विभागों से लेकर पंचायतों में घुन की तरह घुसे रिश्वतखोरी व बिचौलियागिरी के कारण सरकार की मंशा कितनी पूरी होगी, बताने की जरूरत नहीं है।
सूखे से निबटने के लिए राज्य सरकार ने उच्चस्तरीय बैठक कर गांवों में आठ घंटे बिजली देने का व सरकारी नलकूपों को चालू करने का निर्देश दिया है, पर यह इतना आसान नहीं है। राज्य के करीब 70 फीसदी राजकीय नलकूप खराब हैं। ऐसी सिथति में धान की रोपनी तक इसे ठीक कर पाना और पर्याप्त बिजली आपूर्ति के बावजूद खेतों तक पानी पहुंचा पाना असंभव है। राज्य सरकार ने धान व मक्के के लिए डीजल अनुदान देने की घोषणा की है, जो स्वागतयोग्य है, लेकिन इसका लाभ कितने किसान उठा पायेंगे। अनुदान राशि में लूटखसोट होगा और वास्तविक किसान मुंह देखते रह जायेंगे। राशि पाने से लेकर प्रखंड कार्यालय व शिविर तक दौड़ लगाते उन्हें एक और पीड़ा सहनी पड़ेगी।
यह पहली बार नहीं है। इससे पहले भी बिहार सूखे की मार झेल चुका है। ऐसा नहीं है कि प्रदेश के पास पानी की भी कमी है। बाढ़ व बेमौसम बारिश के पानी की उपलब्धता को सहेजना सीख लें तो ऐसे संकट का सामना किया जा सकता है। जल प्रबंधन की दीर्घकालिक योजना पर सरकार को काम करना चाहिए। इनसानी करतूतों की वजह से हो रहे जलवायु परिवर्तन का नतीजा कर्इ रूपों में हमारे सामने आयेगा। इसका सबसे बुरा प्रभाव खेती पर ही पड़ेगा। सो, हमें अभी से सचेत हो जाना चाहिए।
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