वाल्मीकि व्याघ्र परियोजना के जंगल में दोगुने हुए बाघ

—————————————————————–    संतोष सारंग


दुनियाभर में बाघों की घटती संख्या को लेकर पर्यावरणप्रेमी चिंतित हैं.  इस बीच बिहार से एक अच्छी खबर है. देश का 18 वां व बिहार का दूसरा टाइगर रिजर्व “वाल्मीकि व्याघ्र परियोजना के सघन जंगल में गत चार साल में बाघों की संख्या दोगुनी से भी अधिक हो गयी है. चार साल के अंतराल के बाद कैमरा ट्रैप के जरिये हुई गणना में इस वन आश्रण़ी में कुल 23 बाघों के होने का प्रमाण मिला है, जिनमें 17 प्रौढ़ बाघ हैं. शेष शावक हैं. वन अधिकारी कहते हैं कि वन विभाग के सार्थक प्रयासों का एवं बाघों की सुरक्षा व संरक्षण पर हुए खर्च का यह बेहतरीन परिणाम है. वन निदेशक संतोष तिवारी बताते हैं कि वाल्मीकि व्याघ्र परियोजना के वन क्षेत्र में बाघों को बचाने, उसके संरक्षण के जो प्रयास किये गए, वे सफल हुए हैं. कैमरा ट्रैप में कैद तसवीरों की जांच एक्सपर्ट ने की है. हम इस खबर से उत्साहित हैं. हालांकि, इस वन आश्रणी से गैंडा, स्लौथ, बीयर, पायथन लुप्त हो रहे हैं.

जंगलों में मनुष्य की बढ़ती दखलंदाजी, विकास की होड़ में सिकुड़ते जंगल एवं शिकारियों की करतूतों की वजह से देश के अभ्यारण में बाघों की संख्या कम होती जा रही है. एक अनुमान के मुताबिक बीसवीं सदी के शुरू में देश में 40 हजार से ज्यादा बाघ थे. शुरू के सात दशकों में ही जंगलों के सिमटते जाने व शिकार के कारण 1972  में बाघों की संख्या घटकर 1872 रह गयी. राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकार की 28 मार्च 2011 में जारी रिपोर्ट के अनुसार, बाघों की संख्या कम से कम 1571 एवं अधिकतम 1875 है. विश्व के आंकड़ों पर गौर करें तो और दुःख होगा. आज से सौ वर्ष पहले विश्वभर में एक लाख से अधिक बाघ थे. अब यह संख्या सिर्फ 3200 रह गयी है.

बाघों के संरक्षण के उद्देश्य से भारत सरकार ने 1973 में नौ टाइगर रिजर्व क्षेत्र में ‘बाघ बचाओ योजना’ शुरू की. हालांकि, अपेक्षित परिणाम नहीं आया है, लेकिन वाल्मीकि व्याघ्र परियोजना से आयी खबर हमारे सामने उम्मीद की किरण जरूर जगाती है.

संतोष सारंग

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