भारत और अमेरिका मिलकर गेहूं की ऐसी नयी प्रजाति विकसित करने का अनुसंधान करेंगे जो ज्यादा गर्मी बर्दाश्त कर सके। इस परियोजना पर करोड़ों डॉलर खर्च होने का अनुमान है।
कार्बनिक धूएं के चलते वायुमंडल के अधिक गर्म होने जलवायु चक्र में परिवर्तन को देखते हुए आने वाले समय में गेहूं ऐसे कृषि फसलों की ऐसी प्रजातियों की जरूरत महसूस हो रही है जो में ज्यादा तापमान में फल फूल सकें। वाशिंगटन स्टेट यूनिवर्सिटी के भारतीय मूल के एक अमेरिकी वैज्ञानिक को गेहूं अनुसंधान परियोजना का नेतृत्व दिया गया है। इसमें दोनों देशों के वैज्ञानिकों को शामिल किया गया है। इस कार्यक्रम को यूएस एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (यूएसएड), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) और गेहूं अनुसंधान निदेशालय (डीडब्ल्यूआर) से सहायता मिलेगी।
यह पहल विश्व में भुखमरी दूर करने और अनाज उत्पादन बढ़ाने की अमेरिकी सरकार की भविष्योन्मुखी पहल का भविष्य में उदर-पूर्ति का अंग है। यूएसएड के एक बयान में कहा गया कि इस परियोजना के तहत पांच साल में जलवायु परिवर्तन प्रतिरोधी गेहूं की कुछ किस्मे विकसित कर लेने का लक्ष्य है।
परियोजना के निदेशक कुलविंदर गिल ने कहा कि अनुसंधान उत्तरी भारत के मैदानी इलाके में केंद्रित होगा जहां करीब एक अरब आबादी रहती है और उन्हें सीमित जल संसाधन और बढ़ते तापमान की चुनौती का सामना करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि खाद्य सुरक्षा के लिए यह पहल उल्लेखनीय है कि इसका असर उत्तर भारत के मैदानी इलाकों से कहीं दूर तक होगा।
उन्होंने कहा कि इस परियोजना से विश्व के सभी गेहूं उत्पादक क्षेत्रों को फायदा होगा, क्योंकि बाली आने के समय तापमान बढ़ना गेहूं उत्पादक क्षेत्रों के लिए सबसे गंभीर चुनौती है। परियोजना में भारत और अमेरिका के कई कृषि संस्थान और विश्वविद्यालय और कंपनियां शामिल होंगी। गिल ने कहा कि इस अनुसंधान में 35 पीएचडी छात्र और 30 रिसर्च फेलो भी शिरकत करंेगे।